जयशंकर प्रसाद - जीवन परिचय | Biography of Jai shankar Prasad

जयशंकर प्रसाद - जीवन परिचय | Biography of Jaishankar Prasad 

Biography of Jaishankar Prasad नाम -    जय शंकर प्रसाद 

जन्म -   1890 ई. में 

स्थान -   काशी  ( वाराणसी  उ प्र  )

पिता -     बाबु    देवी  प्रसाद 

मृतु -        15  नवम्बर  1937



जय शंकर प्रसाद का जन्म सन 1890 ई. में काशी (वाराणसी उ.प्र.) के एक सुंघनी साहू, नमक प्रसिद्य वैश्य परिवार में हुआ था |

उनके यहाँ तम्बाकू का व्यापार होता था | जय शंकर प्रसाद के पिता का नाम देवीप्रसाद पितामह शिवरतन साहू थे | इनके पिता पितामह परम शिव भक्त और दयालु थे | उनके पिता भी अत्याधिक उदार और साहित्य प्रेमी थे |

प्रसाद जी का बचपन सुखमय था | बाल्यकाल में ही उन्होंने अपनी माता के साथ धारा क्षेत्र, ओकारेश्वर, पुष्कर, उज्जैन और ब्रज आदि तीर्थो की यात्रा की | यात्रा से लौटने के बाद पहले उनके पिता का फिर चार वर्ष बाद ही उनकी माता का निधन हो गया |

प्रसाद जी की शिक्षा-दीक्षा और पालन-पोषण का प्रवन्ध उनके बड़े भाई शम्भुरात्न ने किया और क्वीन्स कालेज में उनका नाम लिखवा दिया, किन्तु उनका मन वहां न लगा | उन्होंने अंग्रेजी और संस्क्रत का अध्ययन स्वाध्याय से घर पर ही प्राप्त किया |

उनमे बचपन से ही साहित्यानुराग था | दे साहित्यिक पुस्तकें पढ़ते और काव्य रचना करते रहे | पहले तो उनके बड़े भाई उनकी काव्य-रचना में बाधा डालते रहे, परन्तु जब उन्होंने देखा की प्रसाद जी का मन काव्य रचना में अधिक लगता है, तब उन्होंने इसकी पूरी स्वतंत्रता उन्हें दे दी | 

प्रसाद जी स्वतंत्र रूप से काव्य-रचना के मार्ग पर बढ़ने लगे | इसी बीच उनके बड़े भाई शम्भुरात्न जी का निधन हो जाने से घर की स्थिति खराब हो गयी | व्यापार भी नष्ट हो गया | पौतर्क सम्पति बेचने से कर्ज से मुक्ति तो मिली, पर वे क्षय रोग का शिकार होकर मात्र 47 वर्ष की आयु में 15 नवम्बर 1937 की इस संसार से विदा हो गये ||

काव्य-                                     आंसू, कामायनी, चित्राधार,लहर और झरना  |

कहानी-                                  आंधी, इन्द्रजाल, छाया, प्रतिध्वनि आदि |

उपन्यास-                                 तितली, कंकाल, और इरावती |

नाटक-                                      सज्जन, कल्याणी, चन्द्रगुप्त, स्कंदगुप्त, अजात्स्त्रू, प्रायश्चित,जन्मेजय                                                                 का नागय, विशाखा, ध्रुवस्वामिनी आदि |

निबन्ध-                                       काव्य-कला एवं अन्य निबन्ध |

भाषा-शैली प्रसाद जी की भाषा में संस्क्रती के तत्सम शब्दों की बहुलता है | भावमयता उनकी भाषा की प्रमुख विशेषता है | इनकी भाषा में मुहावरों, लोकोकित्यो तथा विदेशी शब्दों का प्रयोग न के बराबर हुआ है | प्रसाद जी ने विचारात्मक, चित्रात्मक, भावात्मक, अनुसंधानात्मक तथा इतिवार्त्तात्मक शैली का प्रयोग किया है ||

Biography of Jaishankar Prasad









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